मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त;
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ!
दिल गया रौनक़-ए-हयात गई;
ग़म गया सारी कायनात गई!
जब कोई ख्याल इस दिल से टकराता है,
तो दिल न चाहते हुए भी खामोश हो जाता है;
कोई सब कुछ कह कर भी कुछ नही कह पाता है,
और कोई बिना कुछ कहे भी सब कुछ कह जाता है!
कभी बैठे सब में जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तुगू; वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो!
कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद; याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद!
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था, सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है; ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़, वो तेरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है!
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास; दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं!
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें;
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं!
*इल्म: ज्ञान
*रिसाले: पत्रिकाओं
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
अब तो हर बात याद रहती है; ग़ालिबन मैं किसी को भूल गया!