मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया,
तुम क्यों उदास हो गए तुम्हें क्या याद आ गया;
कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर,
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया।
दी क़सम वस्ल में उस बुत को ख़ुदा की तो कहा;
तुझ को आता है ख़ुदा याद हमारे होते।
वस्ल = मिलन
याद उसकी अभी भी आती है;
बुरी आदत है कहाँ जाती है।
बता किस कोने में सुखाऊं तेरी यादें;
बरसात बाहर भी है और अन्दर भी।
दोस्ती अपनी भी असर रखती है फ़राज़;
बहुत याद आएँगे ज़रा भूल कर तो देखो।
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका;
हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद।
अब आ गए हैं आप तो आता नहीं है याद;
वर्ना कुछ हम को आप से कहना ज़रूर था!
अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़;
उमर गुजरी है उस की याद का नशा किये हुए।
आया ही था ख्याल कि आँखें छलक पड़ीं;
आँसू किसी की याद के कितने करीब हैं।
खुल जाता है तेरी यादों का बाजार सरेआम;
फिर मेरी रात इसी रौनक में गुजर जाती है।



