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कर रहा था गम-ए-जहान का हिसाब;
आज तुम याद बेहिसाब आये।

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ना मुस्कुराने को जी चाहता है;
ना आंसू बहाने को जी चाहता है;
लिखूं तो क्या लिखूं तेरी याद में;
बस तेरे पास लौट आने को जी चाहता है!

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मैं तुम्हारी वो याद हूँ;
जिसे तुम अक्सर भूल जाते हो।

बेचैन इस क़दर था, सोया न रात भर;
पलकों से लिख रहा था, तेरा नाम चाँद पर!

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कितनी खूबसूरत हो जाती है उस वक्त दुनिया;
जब कोई कहता है कि तुम याद आ रहे हो!

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बड़ी तलब लगी है खुद को आजमाने की;
कहो तो यादों के तूफानों का रुख मोड़ दूँ!

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इस छोटे से दिल में किस किस को जगह दूँ मैं;
गम रहें, दम रहे, फरियाद रहे या तेरी याद!

कहीं यादों का मुकाबला हो तो बताना, जनाब;
हमारे पास भी किसी की यादें बेहिसाब होती जा रही हैं!

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तेरे ख़त में इश्क़ की गवाही आज भी है,
हर्फ़ धुंधले हो गए हैं मगर स्याही आज भी है।

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सरहदें तोड़ के आ ज़ाती है किसी पंछी की तरह,
यह तेरी याद है जो बंटती नहीं मुल्कों की तरह।

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