नजरों से दूर हो कर भी, यूं तेरा रूबरू रहना,
किसी के पास रहने का, सलीका हो तो तुम सा हो।
यादें भी क्या क्या करा देती हैं,
कोई शायर हो गया, कोई खामोश।
फिर पलट रही हैं सर्दियों की सुहानी रातें,
फिर तेरी याद में जलने के जमाने आ गए।
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं;
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं।
बंद कर दिए है हमने दरवाज़ें इश्क के,
पर तेरी याद हैं कि दरारों में से भी आ जाती हैं।
काश! तेरी यादो की कोई सरहद होती,
पता तो चलता अभी कितना सफर और तय करना है।
तेरी याद से शुरू होती है मेरी हर सुबह,
फिर ये कैसे कह दूँ कि मेरा दिन खराब है।
सिसकियाँ लेता है वजूद मेरा गालिब,
नोंच नोंच कर खा गई तेरी याद मुझे।
बैठे थे अपनी मस्ती में कि अचानक तड़प उठे,
आ कर तुम्हारी याद ने अच्छा नहीं किया।
आज हम हैं कल हमारी यादें होंगी,
जब हम ना होंगे तब हमारी बातें होंगी,
कभी पलटोगे ज़िन्दगी के यह पन्ने,
तब शायद आपकी आँखों से भी बरसातें होंगी।



