ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में।
आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने की,
लम्हें तो अपने आप मिल जाते हैं;
कौन पूछता है पिंजरे में बंद परिंदों को,
याद वही आते हैं जो उड़ जाते हैं।
सुना है कि तुम रातों को देर तक जागते हो,
यादों के मारे हो या मोहब्बत मे हारे हो।
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो;
ना जाने कसी गली में ज़िन्दगी की शाम हो।
अजीब जुल्म करती हैं तेरी यादें मुझ पर;
सो जाऊं तो उठा देती हैं जाग जाऊँ तो रुला देती हैं।
आज मुस्कुराने की हिम्मत नहीं मुझ में,
आज टूट कर मुझे उसकी याद आ रही है।
जब जब तेरी यादों का रमज़ान आता हैं,
मेरी आँखें नींद के रोज़े रखती है।
मत पूछो कि मै अल्फाज कहाँ से लाता हूँ,
ये उसकी यादों का खजाना है, बस लुटाये जा रहा हूँ।
आज ये पल है, कल बस यादें होंगी;
जब ये पल ना होंगे, तब सिर्फ बातें होंगी;
जब पलटोगे जिंदगी के पन्नों को;
तो कुछ पन्नों पर आँखें नम और कुछ पर मुस्कुराहटें होंगी।
कितनी अजीब है मेरे अन्दर की तन्हाई भी,
हजारो अपने है मगर याद सिर्फ वो ही आता है।



