समझा दो तुम अपनी यादों को ज़रा;
दिन रात तंग करती हैं मुझे कर्ज़दार की तरह।

हर रात रो-रो के उसे भुलाने लगे;
आंसुओं में उस के प्यार को बहाने लगे;
ये दिल भी कितना अजीब है कि;
रोये हम तो वो और भी याद आने लगे।

अजीब जुल्म करती हैं तेरी यादें मुझ पर;
सो जाऊं तो उठा देती हैं जाग जाऊँ तो रुला देती हैं।

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यादें अगर आँसू होती तो चली जाती;
यादें अगर लिखावट होती तो मिट जाती;
यादें ज़िंदगी में बसा वो लम्हा हैं;
जो लाख कोशिशों के बाद भी लफ़्ज़ों में नहीं सिमट पाती।

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बहुत अजब होती हैं यादें यह मोहब्बत की,
रोये थे जिन पलों में याद कर उन्हें हँसी आती है;
और हँसे थे जिन पलों में अब याद कर उन्हें रोना आता है।

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं;
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं।

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जब भी तन्हाई में उनके बगैर जीने की बात आयी;
उनसे हुई हर एक मुलाकात मेरी यादों में दौड आई।

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जब भी तेरी यादों को आसपास पाता हूँ;
खुद को हद दर्ज़े तक उदास पाता हूँ;
तुझे तो मिल गई खुशियाँ ज़माने भर की;
मै अब भी दिल में वही प्यास पाता हूँ।

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यादें आँसू होती तो छलक जाती;
यादें लिखावट होती तो मिट जाती;
यादें तो जिंदगी में बसा वो एहसास हैं;
जो लाख कोशिश के बाद भी लफ़्ज़ों में बयान नहीं होती।

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यकीन करो आज इस कदर याद आ रहे हो तुम;
जिस कदर तुम ने भुला रखा है मुझे।

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