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वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का;
जो पिछली रात से याद आ रहा है!

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मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में;
क्यों तेरी याद का बादल मेरे सिर पर आया!

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तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी;
कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो!

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फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम;
जब धूप में साया कोई सिर पर न मिलेगा!

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क्या सितम है कि अब तेरी सूरत;
ग़ौर करने पे याद आती है!

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आप की याद आती रही रात भर;
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर!

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इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब;
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम!

*फ़राग़त: आराम

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सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर;
अब किसे रात भर जगाती है!

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काफ़ी है मेरे दिल की तसल्ली को यही बात; आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया!

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उस को देखा तो ये महसूस हुआ;
हम बहुत दूर थे ख़ुद से पहले!