कितनी जल्दी ज़िन्दगी गुज़र जाती है;
प्यास बुझती नहीं और बरसात चली जाती है;
आप की यादें कुछ इस तरह आती हैं;
नींद आती नहीं और रात गुज़र जाती है!
हर वक़्त हम आप को याद करते हैं;
गिण-गिण के साँसे हम उधार लिया करते हैं;
आप को क्या पता मर कर भी हम आप की याद में साँसे लिया करते हैं।
उनसे दूर जाने का इरादा ना था;
सदा साथ रहने का वादा भी ना था;
वो याद नहीं करेंगे जानते थे हम;
पर इतनी जल्दी भुल जाऐंगे अंदाज़ा ना था।
उसकी आदत पड़ गई है मुझे, जो छुड़ाए नही छुटती;
खुद धुंधला पड़ गया हूँ मैं, उसे याद करते-करते;
अब उसे न सोचू तो जिस्म टूटने सा लगता है;
एक वक़्त गुजरा है उसके नाम का नशा करते-करते।
लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे;
पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे;
उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद;
और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।
बहुत जी चाहता है कैद-ए-जाँ से हम निकल जायें;
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है।
सारी उम्र आंखो मे एक सपना याद रहा;
सदियाँ बीत गयी पर वो लम्हा याद रहा;
ना जाने क्या बात थी उनमे और हममे;
सारी महफ़िल भूल गए बस वह चेहरा याद रहा ।
रेख़ती के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ग़ालिब;
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था।
कब्र के सन्नाटे में से एक आवाज़ आयी;
किसी ने फूल रख के आंसूं की दो बूंद बहायी;
जब तक था जिंदा तब तक ठोकर खायी;
अब सो रहा हूं तो उसको मेरी याद आयी।
याद आते हैं तो कुछ भी नहीं करने देते;
अच्छे लोगों की यही बात बहुत बुरी लगती है ।



