सब कुछ हम उन से कह गए लेकिन ये इत्तेफ़ाक़;
कहने की थी जो बात वही दिल में रह गई!
बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए;
हम एक बार तेरी आरज़ू भी खो देते!
ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फ़िज़ूल है;
सूखी नदी के पास समुंदर न जाएगा!
गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैंने;
वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैंने!
और तो क्या था बेचने के लिए;
अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं!
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में;
मेरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं!
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी;
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह!
मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती;
हमारे दरमियाँ ये फ़ासले, कैसे निकल आए!
सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं;
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं!
ज़िंदगी किस तरह बसर होगी;
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में!



