
कोई शिक़ायत नही रही तेरी बेरुख़ी से अब;
"मशरूफ़" तुम भी अच्छे हो "तन्हा" हम भी अच्छे हैं!

देखिए, देते हैं इस पर आप हमको क्या सज़ा,
दे दिया दिल तुमको ये तकसीर' हमने की तो है; ज़ोर पर आया है जय सौदा'-ए-जुल्फे-पुरशिकन,
टुकड़े-टुकड़े तोड़कर जंजीर हमने की तो है!

आती नहीं सदाएं उनकी मेरे क़फ़स में,
होती मेरी रिहाई ऐ काश मेरे बस में;
क्या बदनसीब हूँ मैं घर को तरस रहा,
साथी तो है वतन में, मैं क़ैद में पड़ा हूँ!

कहां तक चुप रहूँ, चुपके रहने से कुछ नहीं होता,
कहूँ तो क्या कहूँ उनसे, कहे से कुछ नहीं होता;
नहीं मुमकिन कि आए रहम उनको ऐ जफर मुहा पर,
सहूँ जसके सितम क्या में, सहे से कुछ नहीं होता!

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में,
किसकी बनी है आलमे नापायदार में;
बुलबुल को बागवां से न सैय्याद से गिला,
किस्मत में कैद लिखी थी, फसले बहार में!

हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है;
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा!

लोग अक्सर "ग़लत" इंसान से "धोखा" खाने के बाद;
अच्छे "इंसान से "बदला" लेते है!

अगर वो प्यार करना भी तेरी नादानियाँ ही थीं;
गिना दे अब समझदारी से तेरे हाथ क्या आया!

कौन है इस जहाँ मे जिसे धोखा नहीं मिला;
शायद वही है ईमानदार जिसे मौक़ा नहीं मिला!

सीख जाओ वक़्त पर किसी की चाहत की कदर करना;
कहीं कोई थक ना जाए तुम्हे अहसास दिलाते दिलाते!