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जो उन मासूम आँखों ने दिए थे;
वो धोखे आज तक मैं खा रहा हूँ!

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बुरा तो हमें हर कोई बताता है ऐ दोस्त;
अब तू बता... तेरे सुनने में क्या आया!

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मंजिलें मुझे छोड़ गयी रास्तों ने संभाल लिया;
जिंदगी तेरी जरूरत नहीं मुझे हादसों ने पाल लिया!

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कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा;
मुझे मालूम है क़िस्मत का लिखा भी बदलता है!

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अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे;
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे!
* बे-हिस- बेसुध

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सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये;
कभी पैरों से रौंदी थी यहीं परछाइयां हमने!

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अब जिस तरफ़ से चाहे गुज़र जाए कारवाँ;
वीरानियाँ तो सब मेरे दिल में उतर गईं!

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आधे से कुछ ज्यादा हैं पूरे से कुछ कम;
कुछ जिन्दगी, कुछ गम, कुछ इश्क, कुछ हम!

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हम रूठे भी तो किसके भरोसे रूठें;
कौन है जो आयेगा हमें मनाने के लिए!

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न तेरी शान कम होती न रुतबा ही घटा होता;
जो गुस्से में कहा तुमने वही हँस के कहा होता!

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