ख़ुदा महफूज़ रखें आपको तीनों बलाओं से,
वकीलों से, हक़ीमों से, हसीनों की निगाहों से!
आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ;
या इश्क़ की पकड़ कर गर्दन मरोड़ डालूँ|
कौन डूबेगा किसे पार उतरना है 'ज़फ़र';
फ़ैसला वक़्त के दरिया में उतर कर होगा!
हसरत भरी निगाहों को आराम तक नहीं,
वो यूँ बदल गये है के अब सलाम तक नहीं!
गुनाह करके कहां जाओगे गालिब;
ये जमीन और आसमान सब उसी का है!
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी;
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन!
अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़';
मानते हैं सब मिरे उस्ताद को !
उडती हुई अफवाहों के जवाब तो बहुत थे मेरे पास;
मगर खत्म हुए किस्सों की खामोशी ही बेहतर लगी!
परदो की क्या बिसात जो दीदार को रोक दे;
नजर में धार हो तो क्या इस पार क्या उस पार!
शिकायतें शोर मचाती हैं बहुत,
प्यार की आवाज अब ठीक से सुनाई नहीं देती!



