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कुछ तो मेरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख;
तू भी तो कभौ मुझको मनाने के लिये आ!

पिंदार-ए-मोहब्बत : प्यार का अभिमान
भरम: भ्रम

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बड़ी अजीब सी है शहरों की रौशनी,
उजालों के बावजूद चेहरे पहचानना मुश्किल है!

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हर क़दम पर हम समझते थे कि मंज़िल आ गयी;
हम क़दम पर इक नयी दरपेश मुश्किल आ गयी!

क़दम: पैर
दरपेश: सम्मुख, सामने

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लौटा जो सज़ा काट के, वो बिना ज़ुर्म की;
घर आ के उसने, सारे परिंदे रिहा कर दिए!

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अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख,
इक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है!

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तुम साथ नहीं हो लेकिन हमसे रूठ गये हो;
तुम जिन्दगी की राह में हमसे छूट गये हो;
बढ़ती ही जा रही हैं अपनी दूरियाँ दिल की;
तुम हाथ की लकीरों में हमसे टूट गये हो!

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चिलमन का उलट जाना ज़ाहिर का बहाना है;
उनको तो बहर-सूरत इक जलवा दिख़ाना है!

चिलमन: घूंघट
ज़ाहिर: स्पष्ठ
बहर-सूरत: हर हाल में

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खामोश बैठे हैं तो लोग कहते हैं उदासी अच्छी नही;
और ज़रा सा हंस लें तो लोग मुस्कुराने की वजह पूछ लेते है।

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क्यों मुझसे तुम दूर-दूर सा रहते हो;
अपने हुस्न पर मगरूर सा रहते हो;
प्यार की कसमों के राजदार थे कभी;
अब बेवफा बनकर हुजूर सा रहते हो!

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मुद्दतें गुजरी हैं हमको करीब आए हुए;
रात है बेचैन शमा प्यार की जलाए हुए;
बिखरी हुई हैं साँसों में तेरी ख्वाहिशें;
मेरी नज़रों में ख्वाब हैं मुस्कुराए हुए!

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