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आए कुछ अब्र कुछ शराब आए;
उस के बाद आए जो अज़ाब आए!

अब्र: बादल,
अज़ाब: दुख़, संकट, विपदा

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दम भर मेरे पहलू में उन्हें चैन कहाँ है;
बैठे कि बहाने से किसी काम से उठे!

पहलू: पसली, (पास)

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मोहबबत में नहीं है फ़र्क जी ने और मरने का;
उसी को देख कर जीते हैं जिस क़ाफ़िर पे दम निकले!

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दम भर मेरे पहलू में उन्हें चैन कहाँ है;
बैठे, कि बहाने से किसी काम से उठे!

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मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त;
आह अब मुझ से तेरी रंजिश-ए-बेजा भी नहीं!

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तेरी राह-ए-तलब में ज़ख़्म सब सीने पे खाये है;
बहार-ए-ग़ुलिस्तां मेरी हयात-ए-जावेदाँ मेरी!

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भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मु्द्दतों में हम;
किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हम से पूछिये!

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बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ग़ालिब;
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देख़ते हैं!

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उठकर तो आ गये हैं तेरी बज़्म से मगर;
कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आये हैं!

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पूरा भी हो के जो कभी पूरा ना हो सका;
तेरी निगाह का वो तक़ाज़ा है आज तक!

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