
हर शख्स गुनाहगार है कुदरत के कत्ल में;
ये हवाएं जहरीली यूँ ही नहीं हुई!

तेरी महफ़िल से उठे तो किसी को खबर तक ना थी;
तेरा मुड़-मुड़ कर देखना हमें बदनाम कर गया!

बाग़ में ले के जन्म हम ने असीरी झेली;
हम से अच्छे रहे जंगल में जो आज़ाद रहे!

ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं;
तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं!

मेरी फितरत को क्या समझेंगे ये ख्वाब-ए-गर्दाँ वाले;
सवेरे के सितारे की चमक है राज़दाँ मेरी!

अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल;
लेकिन कभी-कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे!
पासबान-ए-अक़्ल: बुद्धी का निरीक्षक, Guardian of the mind, Intution

दर पे रहने को कहा और कह के कैसा फिर गया;
जितने अर्से में मेरा लिपटा हुआ बिस्तर खुला!

हम अपने दिल के मुकामात से हैं बेगाने;
इसी में वरना हरम है, इसी में बुतखाने!
मुकामात = स्थान, घर;
बेगाना = अपरिचित, अनजान;
हरम = काबा, खुदा का घर;
बुतखाना - मंदिर, मूर्तिगृह

दिल को बर्बाद किये जाती है गम बदस्तूर किये जाती है;
मर चुकीं सारी उम्मीदें, आरजू है कि जिये जाती है!
बदस्तूर = पहले की तरह, यथावत, यथापूर्व

क्या बताऊँ किस क़दर ज़ंजीर-ए-पा साबित हुए;
चंद तिनके जिन को अपना आशियाँ समझा था मैं!
ज़ंजीर-ए-पा = पैरों की ज़ंज़ीर