
लुत्फ-ए-बहार कुछ नहीं गो है वही बहार;
दिल क्या उजड़ गया कि जमाना उजड़ गया!
लुत्फ: आनन्द, मजा

रहें न रिंद ये वाइज़ के बस की बात नहीं;
तमाम शहर है दो-चार-दस की बात नहीं।

एक उम्र वो थी कि जादू में भी यक़ीन था;
एक उम्र ये है कि हक़ीक़त पर भी शक़ है।

रूठूँगा अगर तुझसे तो इस कदर रूठूँगा कि,
ये तेरीे आँखे मेरी एक झलक को तरसेंगी।

गिर कर उठने तक तो हाथ पकड़े रखा उसने मेरा,
जरा सँभल कर चलना सीखा तो फिर से खो गए भीड़ में!

मेरे फन को तराशा है सभी के नेक इरादों ने;
किसी की बेवफाई ने, किसी के झूठे वादों ने।

कहाँ दूर हट के जायें, हम दिल की सरजमीं से,
दोनों जहान की सैरें, हासिल हैं सब यहीं से!
सरजमीं = पृथ्वी, जमीन, देश, मुल्क

देखकर पलकें मेरी कहने लगा कोई फक़ीर,
इन पे बरख़ुरदार सपनों का वज़न कुछ कम करो!

रेत की दीवार हूँ गिरने से बचा ले मुझको;
यूँ न कर तेज़ हवाओं के हवाले मुझको;
आ मेरे पास ज़रा देख मोहब्बत से मुझे;
मैं बुरा हूँ तो भलाई से निभा ले मुझको!

अर्ज़-ए-अहवाल को गिला समझे;
क्या कहा मैंने आप क्या समझे|