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क्या बेचकर हम खरीदें फुर्सत-ए-जिंदगी;
सब कुछ तो गिरवी पड़ा है जिम्मेदारी के बाजार में।

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एक सुकून की तालाश में, ना जाने कितनी बेचैनियाँ पाल ली;
और लोग कहते हैं, हम बड़े हो गये और ज़िन्दगी संभाल ली।

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किस नाज़ से कहते हैं वो झुंजला के शब-ए-वस्ल;
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते।

शब-ए-वस्ल = मिलन की रात

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किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल;
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा!

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अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअत को पा सके;
मेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समा सके!

अर्ज़-ओ-समा = धरती और आकाश
वुसअत = विशालता, सम्पूर्णता

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अगर इश्क करो तो आदाब-ए-वफ़ा भी सीखो;
ये चंद दिन की बेकरारी मोहब्बत नहीं होती!

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आज गुमनाम हूँ तो ज़रा फासला रख मुझसे;
कल फिर मशहूर हो जाऊँ तो कोई रिश्ता निकाल लेना!

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आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठें;
दिल-ए-बेताब को आदत है मचल जाने की!

दिल-ए-बेताब = बेचैन दिल

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पसंद आ गए हैं कुछ लोगों को हम;
कुछ लोगों को ये बात पसंद नहीं आयी।

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दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में;
इक आइना था टूट गया देख-भाल में!

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