
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ, क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ; तू भी हीरे से बन गया पत्थर, हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ!

मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे;
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे!
मेरे दाग़-ए-दिल से है रौशनी इसी रौशनी से है ज़िंदगी;
मुझे डर है ऐ मिरे चारा-गर ये चराग़ तू ही बुझा न दे!
*जाँ-ब-लब: जिसके प्राण होंठों पर हों

काँटे तो ख़ैर काँटे हैं इस का गिला ही क्या;
फूलों की वारदात से घबरा के पी गया!

ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते; क्यों बुरे बनते हो तुम नाहक़ किसी के वास्ते! *नाहक़: अनुचित रूप से और अकारण

ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ; हम अपने शहर में होते तो घर गए होते!

जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को; जिस को तुम याद हो वो और किसे याद करे!

हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें; हाँ वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं!

वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता; सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएँ न दीं!

वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है; कि सारी बात मोहब्बत में रख-रखाव की थी!

ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में; हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है! *तसव्वुर: कल्पना