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झूठ पर उस के भरोसा कर लिया;
धूप इतनी थी कि साया कर लिया!

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मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी;
तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं!

*सहरा: रेगिस्तान

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अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें;
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ!

*शमएँ: मोमबत्ती

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राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझे;
आदमी बन जाऊँगा कुछ ठोकरें खाने के बाद!

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कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई;
दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई!

*सदा: आवाज़/ पुकार

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वो पूछता था मेरी आँख भीगने का सबब;
मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया!

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तन्हाई का एक और मज़ा लूट रहा हूँ;
मेहमान मेरे घर में बहुत आए हुए हैं!

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जवानी को बचा सकते तो हैं हर दाग़ से वाइज़;
मगर ऐसी जवानी को जवानी कौन कहता है!

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भोली बातों पे तेरी दिल को यकीन;
पहले आता था अब नहीं आता!

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वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत;
हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है!

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