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दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका;
कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूँ!

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मेरी ज़ुबान के मौसम बदलते रहते हैं;
मैं आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना!

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कोई चारा नहीं दुआ के सिवा;
कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा!

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दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है;
जो किसी और का होने दे न अपना रखे!

*वाबस्ता: संबंधित, जुड़ा हुआ

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उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है;
दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है!

* हया: शर्म
* क़ज़ा: मृत्यु

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और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी;
हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं!

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दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते; अब कोई शिकवा हम नहीं करते!

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उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी; ख़मोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी!

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पहले इसमें एक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था;
रूठना अब तो तेरी आदत में शामिल हो गया!

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बेबसी से नजात मिल जाए;
फिर सवाल-ओ-जवाब कर लेना!

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