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इसीलिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं;
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं!

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ख़ुश-गुमाँ हर आसरा बे-आसरा साबित हुआ;
ज़िंदगी तुझ से तालुक्क खोखला साबित हुआ!

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दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को;
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूँ मैं!

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हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम;
मगर हम तो तमाशा हो गए हैं!

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मेरी तरफ़ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता;
किसी ने तोड़ दिया ऐतबार टूट गया!

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यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता;
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो!

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मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम;
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है!

*पैहम: लगातार

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एक मंज़िल है मगर राह कई हैं 'अज़हर';
सोचना ये है कि जाओगे किधर से पहले!

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ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया;
झूठी क़सम से आप का ईमान तो गया!

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मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ;
मुझे किसी पे भी अब कोई ऐतबार नहीं!

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