मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर; ये सोच ले कि मैं भी तेरी ख़्वाहिशों में हूँ!
इतना गया हूँ दूर मैं ख़ुद से कि दम-ब-दम; करनी पड़े है अपनी भी अब इल्तिजा मुझे! *दम-ब-दम: बार बार
हम ने देखा है ज़माने का बदलना लेकिन; उनके बदले हुए तेवर नहीं देखे जाते!
आदतन तुम ने कर दिए वादे; आदतन हम ने ए'तिबार किया!
मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का इल्म नहीं; जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं! * ख़िज़ाँ: पतझड़
कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई;
तूने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया!
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं;
हम भी सादा हैं इसी चाल में आ जाते हैं!
यही हालात इब्तिदा से रहे;
लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे!
* इब्तिदा :आरम्भ, शुरुआत।
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे;
पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले!
या वो थे ख़फ़ा हम से, या हम हैं ख़फ़ा उन से;
कल उन का ज़माना था, आज अपना ज़माना है!



