कहते हैं दिल से ज्यादा महफूज जगह नहीं दूनिया में और कोई;
फिर भी ना जाने क्यों सबसे ज्यादा यहीं से लोग लापता होते हैं।

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तुम्हें शिकायत है कि मुझे बदल दिया है वक़्त ने;
कभी खुद से भी तो सवाल कर कि क्या तू वही है।

हँस कर कबूल क्या कर ली सजाएँ मैंने,
ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया हर इलज़ाम मुझ पर मढ़ने का।

भूल जाऊंगा उसी वक़्त उसी पल,
बस तू उससे मिला दे जो मुझसे ज़्यादा चाहता है तुम्हें।

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कहीं छत थी, दीवार-ओ-दर थे कहीं, मिला मुझे घर का पता देर से;
दिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझे, मगर जो दिया, वो दिया देर से।

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तू न कर ज़िक्र-ए-मोहब्बत कोई गम नहीं;
तेरी ख़ामोशी भी सच बयाँ कर देती है।

हाथों की लकीरों के फरेब में मत आना;
ज्योतिषों की दुकान पर मुक्कदर नहीं बिकते।

दिलों की बात करता है ज़माना;
लेकिन मोहब्बत आज भी चेहरों से शुरू होती है।

बड़ी अजीब सी है शहरों की रौशनी,
उजालों के बावजूद चेहरे पहचानना मुश्किल है।

वहम से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते,
कसूर हर बार गल्तियों का नही होता।

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