मैं ने माँगी थी उजाले की फ़क़त एक किरन,
तुम से ये किस ने कहा आग लगा दी जाए।
कुछ तो शराफत सीख़ ले ऐ मोहब्बत तू शराब से,
बोतल पर कम से कम लिखा तो होता है कि मैं जानलेवा हूँ।
आवारगी छोड़ दी हमने तो लोग भूलने लगे हैं;
वरना शोहरत कदम चूमती थी जब हम भी बदनाम हुआ करते थे।
आप जिस पर आँख बंद करके भरोसा करते हैं,
अक्सर वही आप की आँखें खोल जाता है।
फिर वही दिल की गुज़ारिश, फिर वही उनका गुरूर;
फिर वही उनकी शरारत, फिर वही मेरा कसूर।
मुझे वो दिन के उजाले में क्यों नहीं दिखता,
जो ख़्वाब रात में आँखें निचोड़ जाता है,
मेरी नज़र को सलीके से मोड़ जाता है,
मेरा वजूद वो ऐसे झंझोड़ जाता है।
अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं,,
कुछ शेर फ़क़त उन को सुनाने के लिए हैं।
बुरे हैं हम तभी तो जी रहे हैं,
अच्छे होते तो दुनिया जीने नहीं देती।
बिकने वाले और भी हैं जाओ जाकर खरीद लो,
हम कीमत से नहीं किस्मत से मिला करते हैं।
नेकियाँ खरीदी हैं हमने अपनी शोहरतें गिरवी रखकर,
कभी फुर्सत में मिलना ऐ ज़िन्दगी तेरा भी हिसाब कर देंगे।



