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हँसकर कबूल क्या कर ली सजाएँ मैंने,
ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया हर इलज़ाम मुझ पर मढ़ने का।

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वो भी आधी रात को निकला और मैं भी,
फिर क्यों उसे चाँद और मुझे आवारा कहते हैं लोग।

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हवा को कह दो कि खुद को आज़मा के दिखाए,
बहुत चिराग बुझाती है कभी एक जला के तो दिखाए।

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नफरत करने वाले भी गज़ब का प्यार करते हैं,
जब भी मिलते हैं कहते हैं तुम्हें छोड़ेंगे नहीं।

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गुमान ना कर अपने दिमाग पर ऐ दोस्त,
जितना तेरे पास है उतना तो मेरा ख़राब रहता है।

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चलने दो ज़रा आँधियाँ हक़ीक़त की,
न जाने कौन से झोंके से अपनों के मुखौटे उड़ जायें।

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आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान,
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे।

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तुझमें और मुझमे फर्क सिर्फ इतना सा है कि,
तेरा कुछ कुछ हूँ मैं और मेरा सब कुछ है तू।

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किस्मत ने जैसा चाहा वैसे ढल गए हम,
बहुत संभल के चले फिर भी फिसल गए हम,
किसी ने विश्वास तोडा तो किसी ने दिल,
और लोगों को लगा कि बदल गए हम।

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उसका चेहरा भी सुनाता है कहानी उसकी,
चाहती हूँ कि सुनूँ उस से ज़ुबानी उस की,
वो सितमगर है तो अब उससे शिकायत कैसी,
और सितम करना भी आदत पुरानी उसकी।

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