हमें उनसे कोई शिकायत नहीं;
शायद हमारी ही किस्मत में चाहत नहीं;
हमारी तक़दीर को लिख कर तो ऊपर वाला भी मुकर गया;
पूछा जो हमने तो बोला यह मेरी लिखावट नहीं।
कभी तो सोच तेरे सामने नहीं गुज़रे;
वो सब समय जो तेरे ध्यान से नहीं गुज़रे;
ये और बात है कि उनके दरमियाँ मैं भी;
ये वाकिये किसी तकरीब से नहीं गुज़रे।
रीत है जाने यह किस ज़माने की;
जो सज़ा मिलती हैं यहाँ किसी से दिल लगाने की;
ना बसाना किसी को दिल में इतना कि;
फिर दुआ माँगनी पड़े रब से उसे भुलाने की।
हमने भी कभी चाहा था एक ऐसे शख्स को;
जो आइने से भी नाज़ुक था मगर था पत्थर का।
उसको क्या सज़ा दूँ जिसने मोहब्बत में हमारा दिल तोड़ दिया;
गुनाह तो हमने किया जो उसकी बातों को मोहब्बत का रंग दे दिया।
दिलों में खोट जुबां से प्यार करते हैं;
बहुत से लोग दुनिया में बस यही प्यार करते हैं।
रहते थे कभी जिनके दिल में हम अज़ीज़ों की तरह;
बैठे हैं हम आज उनके दर पे फकीरों की तरह।
कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी;
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी।
वो भूल गए कि उन्हें हसाया किसने था;
जब वो रूठे थे तो मनाया किसने था;
वो कहते हैं वो बहुत अच्छे है शायद;
वो भूल गए कि उन्हें यह बताया किसने था।
कहाँ से लाऊँ हुनर उसे मनाने का;
कोई जवाब नहीं था उसके रूठ जाने का;
मोहब्बत में सजा मुझे ही मिलनी थी;
क्योंकि जुर्म मेरा था उनसे दिल लगाने का।



