बदले तो नहीं हैं वो दिल-ओ-जान के क़रीने;
आँखों की जलन, दिल की चुभन अब भी वही है।
तमाम रात मेरे घर का एक दर खुला रहा;
मैं राह देखती रही वो रास्ता बदल गया।
चांदनी रात बड़ी देर के बाद आयी;
ये मुलाक़ात बड़ी देर के बाद आयी;
आज आये हैं वो मिलने को बड़ी देर के बाद;
आज की रात बड़ी देर के बाद आयी।
वो, जिनके घर मेहमानों का आना-जाना होता है;
उनको घर का हर कमरा हर रोज़ सजाना होता है;
जिस देहरी की क़िस्मत में स्वागत या वंदनवार न हों;
उस चौखट के भीतर केवल इक तहख़ाना होता है।
तूने नफ़रत से जो देखा है तो याद आया;
कितने रिश्ते तेरी ख़ातिर यूँ ही तोड़ आया हूँ;
कितने धुंधले हैं ये चेहरे जिन्हें अपनाया है;
कितनी उजली थी वो आँखें जिन्हें छोड़ आया हूँ।
शर्मिंदा होंगे जाने भी दो इम्तिहान को;
रखेगा कौन तुम को अज़ीज़ अपनी जान से।
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी;
कुछ गिले-शिकवे भी कर लेते मुनाजतों के बाद।
सजा लबों से अपने सुनाई तो होती;
रूठ जाने की वजह बताई तो होती;
बेच देता मैं खुद को तुम्हारे लिए;
कभी खरीदने की चाहत जताई तो होती।
एक दिन हम तुम से दूर हो जायेंगे;
अंधेरी गलियों में यूं ही खो जायेंगे;
आज हमारी फिक्र नहीं है आपको;
कल से हम भी बेफिक्र हो जायेंगे।
उस की आँखों में नज़र आता है सारा जहाँ मुझ को;
अफ़सोस कि उन आँखों में कभी खुद को नहीं देखा मैंने।



