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हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल;
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती!

*शहरियत: सभ्यता, शिष्टता, नागरिकता।

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अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की;
मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई!

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चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले;
आशिक़ का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले!

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मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूँ;
मेरे हमराह दरिया जा रहा है!

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दिल पर चोट पड़ी है तब तो आह लबों तक आई है;
यूँ ही छन से बोल उठना तो शीशे का दस्तूर नहीं!

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बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता;
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता!

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इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही;
दर्द कम हो या ज्यादा हो मगर हो तो सही!

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आज तो दिल के दर्द पर हँस कर;
दर्द का दिल दुखा दिया मैंने!

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दीया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है;
चले आओ जहाँ तक रौशनी मा'लूम होती है!

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हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं;
दिल हमेशा उदास रहता है!

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