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दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के;
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के!

* शब-ए-ग़म - ग़म/दुख की रात

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हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत;
देंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम!

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इक डूबती धड़कन की सदा लोग न सुन लें;
कुछ देर को बजने दो ये शहनाई ज़रा और!

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काश देखो कभी टूटे हुए आईनों को:
दिल शिकस्ता हो तो फिर अपना पराया क्या है!

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ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा:
अब मैं दिल को क्या समझाऊँ मुझ को भी समझाता जा!

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हर वक़्त की आह-ओ-ज़ारी से दम भर तो ज़रा मिलती फ़ुर्सत;
रोना ही मुक़द्दर था मेरा तो किस लिए मैं शबनम न हुआ!

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ऐसा भी कोई ग़म है जो तुम से नहीं पाया;
ऐसा भी कोई दर्द है जो दिल में नहीं है!

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तुम्हारा दिल मेरे दिल के बराबर हो नहीं सकता;
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता!

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खोया खोया उदास सा होगा;
तुम से वो शख़्स जब मिला होगा!

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आँधियाँ गम की चली और कर्ब-बादल छा गए;
तुझ से कैसे हो मिलन सब रास्ते धुँदला गए!

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