
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता;
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता!

वो नहीं मेरा मगर उस से मोहब्बत है तो है;
ये अगर रस्मों रिवाजों से बग़ावत है तो है!

सिले हों लब ज़बानें बंद तो बातें नहीं होतीं;
मुख़ालिफ़ रास्ते हों तो मुलाक़ातें नहीं होतीं!

पाँव का ध्यान तो है राह का डर कोई नहीं;
मुझ को लगता है मेरा ज़ाद-ए-सफ़र कोई नहीं!

अब ज़िंदगी का कोई सहारा नहीं रहा;
सब ग़ैर हैं कोई भी हमारा नहीं रहा!

मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा;
दिल तोड़ना कठिन था मगर तोड़ना पड़ा!

तुम्हीं बताओ कि अब और तुम से क्या माँगूँ;
ये दर्द-ए-दिल जो दिया है मुझे वो क्या कम है!

ना मेरी ज़ख़्म पर रखो मरहम;
मेरे क़ातिल की ये निशानी है!

कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए;
तमाम उम्र गुज़ारी हवा से लड़ते हुए!

हवा से उजड़ कर बिखर क्यों गए;
वो पत्ते जो सरसब्ज़ शाख़ों पे थे!
*सरसब्ज़ - उत्पादक