दर्द अब दिल की दवा हो जैसे;
ज़िंदगी एक सज़ा हो जैसे!
कितना दुश्वार है जज़्बों की तिजारत करना;
एक ही शख़्स से दो बार मोहब्बत करना!
*दुश्वार-कठिन
मैं बाज़गश्त-ए-दिल हूँ पैहम शिकस्त-ए-दिल हूँ;
वो आज़मा रहा हूँ जो आज़मा चुका हूँ!
मेरी दुआओं की सब नग़्मगी तमाम हुई;
सहर तो हो न सकी और फिर से शाम हुई!
* नग़्मगी - गीतकारी
खिड़की से महताब न देखो;
ऐसे भी तुम ख़्वाब न देखो!
दिल से जब लौ लगी नहीं होती;
आँख भी शबनमी नहीं होती!
चैन पड़ता नहीं है सोने में;
सूइयाँ तो नहीं बिछौने में!
इंतिज़ार-ए-दीद में यूँ आँख पथराई कि बस;
मरते मरते वो हुई आलम में रुस्वाई कि बस!
भूल जाना था तो फिर अपना बनाया क्यूँ था;
तुम ने उल्फत का यकीं मुझ को दिलाया क्यूँ था
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत;
दिल की घनी बस्ती में यारो आन बसे हैं चोर बहुत!



