
नजरें मिला कर किया दिल को ज़ख़्मी,
अदाएं दिखा कर सितम ढहा रहे हो;
वफाओं का मेरी खूब सिला दिया है,
तड़पता हुआ छोड़ कर जा रहे हो!

ना कोई उस से भाग सके और ना कोई उस को पाए;
आप ही घाव लगाए समय और आप ही भरने आए!

भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है;
दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है!

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैंने;
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला!

चल हो गया फैंसला कुछ कहना ही नहीं;
तू जी ले मेरे बगैर मुझे जीना ही नहीं!

काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर;
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ!

कभी टूट कर बिखरो तो मेरे पास आ जाना,
मुझे अपने जैसे लोग बहुत पसंद हैं!

अब क्या बताये किसी को कि ये क्या सजा है;
इस बेनाम ख़ामोशी की क्या वजह है!

दुःख तो अपने ही देते हैं,
वरना गैरों को कैसे पता कि हमें तकलीफ किस बात से होती है!

छोड़ो ना यार, क्या रखा है सुनने और सुनाने में;
किसी ने कसर नहीं छोड़ी दिल दुखाने में!