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रोज़ पिलाता हूँ एक ज़हर का प्याला उसे;
एक दर्द जो दिल में है मरता ही नहीं है!

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तू साथ होकर भी साथ नहीं होती;
अब तो राहत में भी राहत नहीं होती!

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ज़िन्दगी ने मेरे दर्द का क्या खूब इलाज सुझाया;
वक़्त को दवा बताया, ख्वाहिशों से परहेज़ बताया!

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आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझसे मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न माँग।

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सारी दुनिया के गम हमारे हैं;
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं!

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क़त्ल तो लाजिम है इस बेवफा शहर में;
जिसे देखो दिल में नफरत लिये फिरता है।

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इक टूटी-सी ज़िंदगी को समेटने की चाहत थी;
न खबर थी उन टुकड़ों को ही बिखेर बैठेंगे हम।

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खता हो गयी तो फिर सज़ा सुना दो,
दिल में इतना दर्द क्यों है वजह बता दो;
देर हो गयी याद करने में जरूर,
लेकिन तुमको भुला देंगे ये ख्याल मिटा दो।

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सुना है उस को मोहब्बत दुआएँ देती हैं;
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे।

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पांवोंं के लड़खड़ाने पे तो सबकी है नज़र;
सर पे कितना बोझ है कोई देखता नहीं।

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