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सुना है इस महफिल में शायर बहुत हैं,
कुछ हमें भी सुनाओ, आज हम घायल बहुत हैं!

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तपिश और बढ़ गई इन चंद बूंदों के बाद,
काले स्याह बादल ने भी बस यूँ ही बहलाया मुझे।

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आइने और दिल का बस एक ही फसाना है,
टूट कर एक दिन दोनों को बिखर जाना है।

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शब्द तो यदा-कदा, चुभते ही रहते हैं,
मौन चुभ जाए किसी का तो सम्भल जाना चाहिए!

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दर्द ही दर्द है दिल में बयान कैसे करें,
ज़िंदगी ग़मों की गुलाम रिहा कैसे करें,
यूँ तो हमें हमारे दिल ने धोखे दिए बहुत,
पर अपने दिल से हम दगा कैसे करें।

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रोज एक नई तकलीफ रोज एक नया गम;
ना जाने कब एलान होगा कि मर गए हम!

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क्या फूलों की कतरन से बनें हैं तेरे लब;
थके हैं मेरे होंठ इन्हें आराम चाहिये!

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शिकवे आँखों से गिर पड़े वरना;
होठों से शिकायत कब की हमने!

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मैं एक शब्द हूँ कागज़ पर बिखरा हुआ;
तुम विरह की एक अंतहीन कविता हो!

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जख्म नया क्या दोगे;
पुराना ही खुरच दो न!

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