
बंजर नहीं हूं मैं मुझमें बहुत सी नमी है,
दर्द बयां नही करता, बस इतनी सी कमी है!

संभल कर चल नादान, ये इंसानों की बस्ती हैं;
ये रब को भी आजमा लेते हैंफिर तेरी क्या हस्ती हैं!

उसने मुझसे ना जाने क्यों ये दूरी कर ली,
बिछड़ के उसने मोहब्बत ही अधूरी कर दी,
मेरे मुकद्दर में दर्द आया तो क्या हुआ,
खुदा ने उसकी ख्वाहिश तो पूरी कर दी।

यारों कुछ तो जिक्र करो, उनकी क़यामत बाहों का,
जो सिमटते होंगें उनमे, वो तो मर जाते होंगे!

मत पुछो कि मेरा कारोबार क्या है,
मुस्कुराहट की छोटीसी दुकान है, नफरत के बाजार मे!

जिसकी आँखों में कटी थी सदियाँ,
उसने सदियों की जुदाई दी है।

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ;
बाज़ार से ग़ुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ!

तुझ पे उठ्ठी हैं वो खोई हुयी साहिर आँखें;
तुझ को मालूम है क्यों उम्र गवाँ दी हमने!

जिस दिल को सौंपा था मोड़ भी आया उसे;
वो चाहता था छोड़ना मैं छोड़ भी आया उसे;
अब के ताल्लुक ना रखेगा वो कोई मुझसे;
मैं दोनों हाथों को अब जोड़ भी आया उसे!

हिज्र के साहिल पे था जो इश्क का आशियाना;
ग़म की बरसात में नदीम इक रोज़ ढह गया!