
थक गया मेरा पुर्जा-पुर्जा तकलीफों से निकलने में;
हार मानने का दिल नहीं करता और जीत नजर नहीं आती!

माना की मरने वालों को भुला देतें है सभी;
मुझे जिंदा भूलकर तुमने तो कहावत ही बदल दी!

तेरी बाँहों में हमें उम्र कैद की सज़ा चाहिए;
और ये सज़ा हमें बेवजह चाहिए!

साँसों की माला में पिरो कर रखे हैं तेरी चाहतो के मोती,
अब तो तमन्ना यही है कि बिखरूं तो सिर्फ तेरे आगोश में!

महफ़िल में गले मिल के, वो धीरे से कह गए;
ये दुनिया की रस्म है, इसे मोहब्बत न समझ लेना!

गुमान था कि कोई दुश्मन जान नही ले सकता;
अपनों के वार का तो ख़याल तक ना था!

लफ़्ज़ों के बोझ से थक जाती हैं ज़ुबान' कभी कभी;
पता नहीं 'खामोशी मज़बूरी' हैं या 'समझदारी !

दर्द सबके एक है, मगर हौंसले सबके अलग अलग है,
कोई हताश हो के बिखर गया तो कोई संघर्ष करके निखर गया!

अजनबी शहर मे किसी ने पीछे से पत्थर फेंका है;
जख्म कह रहा है जरुर इस शहर मे कोई अपना मौजूद है!

आज से हम भी बदलेंगे अंदाज-ऐ-ज़िंदगी,
राब्ता सबसे होगा, वास्ता किसी से नही।