
लफ़्ज़ों के बोझ से थक जाती हैं, ज़ुबान कभी कभी;
पता नहीं 'खामोशी मज़बूरी हैं या समझदारी!

सिर्फ टूटे हुए लोग ही जानते है,
की टूटने का दर्द क्या होता है !

दो चार लफ्ज़ प्यार के ले कर मैं क्या करूंगा;
करनी है तो वफ़ा की मुकम्मल किताब मेरे नाम कर !

लौटा जो सज़ा काट के, वो बिना ज़ुर्म की;
घर आ के उसने, सारे परिंदे रिहा कर दिए!

ग़म तो जनाब फ़ुरसत का शौक़ है,
ख़ुशी में वक्त ही कहाँ मिलता है।

दिल की बात दिल में छुपा लेते हैं वो,
हमको देख कर मुस्कुरा देते हैं वो,
हमसे तो सब पूछ लेते हैं,
पर हमारी ही बात हमसे छुपा लेते हैं वो|

आसानी से नहीं मिलता ये शोहरत का जाम;
काबिल-ए-तारीफ़ होने के लिए वाकिफ़-ए-तकलीफ़ होना पड़ता है!

आसानी से नहीं मिलता ये शोहरत का जाम;
काबिल-ए-तारीफ़ होने के लिए वाकिफ़-ए-तकलीफ़ होना पड़ता है!

हमारे हर सवाल का सिर्फ एक ही जवाब आया,
पैगाम जो पहूँचा हम तक बेवफा इल्जाम आया।

मीलों का सफर पल में बर्बाद कर गया,
उसका ये कहना, कहो कैसे आना हुआ।