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दयार-ए-दिल की राह में चराग़ सा जला गया;
मिला नहीं तो क्या हुआ, वो शक़्ल तो दिखा गया!

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माना उन तक पहुंचती नहीं तपिश हमारी;
मतलब ये तो नहीं कि, सुलगते नहीं हैं हम!

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तिलिस्म-ए-गुंबद-ए-गर्दूं को तोड़ सकते हैं;
ज़ुजाज की ये इमारत है संग-ए-ख़ारा नहीं!

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अब मैं समझा तेरे रुख़सार पे तिल का मतलब;
दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रखा है!

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मुझे बख्शी ख़ुदा ने कौन रोकेगा ज़ुबाँ मेरी;
तुम्हें हर हाल में सुननी पड़ेगी दास्तां मेरी!

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ग़म दिये हैं हयात ने हम को;
ग़म ने हम से हयात पायी है!

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लुत्फ़-ए-कलाम क्या जो न हो दिल में दर्द-ए-इश्क;
बिस्मिल नहीं है तू तो तड़पना भी छोड़ दे!

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दिल से रुख़स्त हुई कोई ख़्वाहिश;
गिर्या कुछ बे-सबब नहीं आता!

Rukhsat, रुख़स्त: Departing
Giryaa, गिर्या: Tears, Crying
Be-Sabab, बे-सबब: Without any cause

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जी में क्या-क्या है अपने ऐ हम-दम;
पर सुखन ता-बलब नहीं आता!

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चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ायें;
न तुम याद आओ न हम याद आयें!

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