
तुम से मिलती-जुलती मैं आवाज़ कहाँ से लाऊँगा; ताज-महल बन जाए अगर मुम्ताज़ कहाँ से लाऊँगा!

उल्फ़त का है मज़ा कि 'असर' ग़म भी साथ हों; तारीकियाँ भी साथ रहें रौशनी के साथ! *तारीकियाँ: अंधेरा

वो नहीं भूलता जहाँ जाऊँ; हाए मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ!

ये ग़म नहीं है कि हम दोनों एक हो न सके; ये रंज है कि कोई दरमियान में भी न था!

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काँटों से भी ज़ीनत होती है; जीने के लिए इस दुनिया में ग़म की भी ज़रूरत होती है! *फ़क़त: केवल *ज़ीनत: सजावट

कुछ दर्द की शिद्दत है कुछ पास-ए-मोहब्बत है;
हम आह तो करते हैं फ़रियाद नहीं करते!

ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन; लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं!

अभी से पाँव के छाले न देखो; अभी यारो सफ़र की इब्तिदा है! *इब्तिदा: शुरुआत

मेरे अंदर कई एहसास पत्थर हो रहे हैं; ये शीराज़ा बिखरना अब ज़रूरी हो गया है! *शीराज़ा: बिखरी हुई चीज़ों की एकत्रता

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'; मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया!