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हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर;
लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं!

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मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते;
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला!

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दिल में एक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए;
बैठे बैठे हमें क्या जानिए क्या याद आया!

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दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से;
इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से!

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मेरी मजबूरियाँ क्या पूछते हो;
कि जीने के लिए मजबूर हूँ मैं!

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दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे;
मैंने जब की आह उस ने वाह की!

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हमारी मुस्कुराहट पर न जाना;
दिया तो क़ब्र पर भी जल रहा है!

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सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें;
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यों नहीं जाता!

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ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा;
जा चुकी है बहार चुप हो जा!

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ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ;
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया!

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