एक ऐसा भी वक़्त होता है; मुस्कुराहट भी आह होती है!
बताऊँ किस हवाले से उन्हें बैराग का मतलब; जो तारे पूछते हैं रात को घर क्यों नहीं जाता!
आई होगी किसी को हिज्र में मौत; मुझ को तो नींद भी नहीं आती!
रोते जो आए थे रुला के गए; इब्तिदा इंतेहा को रोते हैं!
जाती है धूप उजले परों को समेट के; ज़ख़्मों को अब गिनूँगा मैं बिस्तर पे लेट के!
बहुत क़रीब रही है ये ज़िंदगी हम से; बहुत अज़ीज़ सही ऐतबार कुछ भी नहीं!
हाल तुम सुन लो मेरा देख लो सूरत मेरी; दर्द वो चीज़ नहीं है कि दिखाए कोई!
तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया; ख़ुश हूँ कि कुछ न कुछ तो मेरे पास रह गया!
इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के; आज तक सुलगते हैं ज़ख़्म रहगुज़ारों के!
वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था; पानी पानी कहते कहते डूब गया है!



