ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो

नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

मयख़ाने से बढ़कर कोई ज़मीन नहीं;
जहाँ सिर्फ़ क़दम लड़खड़ाते हैं ज़मीर नहीं!

तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा;
नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख!

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ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो,
ये मय है मय उसे औरों को भी पिला के पियो;
ग़म-ए-जहाँ को ग़म-ए-ज़ीस्त को भुला के पियो,
हसीन गीत मोहब्बत के गुनगुना के पियो!

*मय: शराब

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शब को मय ख़ूब पी, सुबह को तौबा कर ली;
रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई।

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इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से;
सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी!
*तस्दीक़: सच्चे होने की ताईद करना, सच्चा बताना

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शब जो हम से हुआ माफ़ करो; नहीं पी थी बहक गए होंगे!

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कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम;
आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं!

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आलम से बे-ख़बर भी हूँ आलम में भी हूँ मैं;
साक़ी ने इस मक़ाम को आसाँ बना दिया!

*आलम : दुनिया

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पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी;
साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में!

*तिश्नगी: प्यास