
मेरे घर से मयखाना इतना करीब ना था दोस्त;
कुछ लोग दूर हुए तो मयखाना करीब आ गया।

मैं उनकी आँखो से छलकती शराब पीता हूँ;
गरीब हो कर भी मँहगी शराब पीता हूँ;
मुझे नशे में वो बहकने नहीं देते;
उन्हें तो खबर ही नहीं कि मैं कितनी शराब पीता हूँ।

फिर ना पीने की कसम खा लूँगा;
साथ जीने की कसम खा लूँगा;
एक बार अपनी आँखों से पिला दे साकी;
शराफत से जीने की कसम खा लूँगा।

ना पीने का शौक था, ना पिलाने का शौक था;
हमे तो सिर्फ नज़र मिलाने का शौक था;
पर क्या करे यारो, हम नज़र ही उनसे मिला बैठे;
जिन्हें सिर्फ नज़रों से पिलाने का शौक था।

ग़म इस कदर मिला कि घबरा के पी गए;
ख़ुशी थोड़ी सी मिली तो मिला के पी गए;
यूँ तो ना थे जन्म से पीने की आदत;
शराब को तनहा देखा तो तरस खा के पी गए।
पैमाना कहे है कोई मय-ख़ाना कहे है;
दुनिया तेरी आँखों को भी क्या क्या न कहे है।

महकता हुआ जिस्म तेरा गुलाब जैसा है;
नींद के सफर में तू एक ख्वाब जैसा है;
दो घूँट पी लेने दे आँखों के इस प्याले से;
नशा तेरी आँखों का शराब के जाम जैसा है।

मेरे दिल के कोने से एक आवाज़ आती है;
कहाँ गयी वो ज़ालिम जो तुझे तड़पाती है;
जिस्म से रूह तक उतरने की थी ख्वाहिश तेरी;
और अब एक शराब है जो तेरा साथ निभाती है।
नशा हम किया करते है, इलज़ाम शराब को दिया करते हैं;
कसूर शराब का नहीं उनका है जिनका चेहरा हम जाम में तलाश किया करते हैं।
कुछ नशा तो आपकी बात का है;
कुछ नशा तो धीमी बरसात का है;
हमें आप यूँ ही शराबी ना कहिये;
इस दिल पर असर तो आप से मुलाकात का है।