बैठे हैं दिल में ये अरमां जगाये;
कि वो आज नजरों से अपनी पिलायें;
मजा तो तब है पीने का यारो;
इधर हम पियें और नशा उनको आये।
पी के रात को हम उनको भुलाने लगे;
शराब मे ग़म को मिलाने लगे;
ये शराब भी बेवफा निकली यारो;
नशे मे तो वो और भी याद आने लगे।

मैं तोड़ लेता अगर तू गुलाब होती;
मैं जवाब बनता अगर तू सवाल होती;
सब जानते हैं मैं नशा नही करता;
मगर मैं भी पी लेता अगर तू शराब होती।
ग़म इस कद्र बढे कि घबरा कर पी गया;
इस दिल की बेबसी पर तरस खा कर पी गया;
ठुकरा रहा था मुझे बड़ी देर से ज़माना;
मैं आज सब जहां को ठुकरा कर पी गया!
नफरतों का असर देखो जानवरों का बटंवारा हो गया;
गाय हिन्दू हो गयी और बकरा मुसलमान हो गया;
मंदिरो मे हिंदू देखे, मस्जिदो में मुसलमान;
शाम को जब मयखाने गया तब जाकर दिखे इन्सान!

आप को इस दिल में उतार लेने को जी चाहता है;
खूबसूरत से फूलों में डूब जाने को जी चाहता है;
आपका साथ पाकर हम भूल गए सब मैखाने;
क्योकि उन मैखानो में भी आपका ही चेहरा नज़र आता है।
पीने दे शराब मस्जिद में बैठ के ग़ालिब;
या वो जगह बता जहाँ खुदा नहीं है।
यूँ तो ऐसा कोई ख़ास याराना नहीं है मेरा;
शराब से...
इश्क की राहों में तन्हा मिली तो;
हमसफ़र बन गई.......
उम्र भर भी अगर सदाएं दें;
बीत कर वक़्त फिर नहीं मरते;
सोच कर तोड़ना इन्हें साक़ी;
टूट कर जाम फिर नहीं जुड़ते।
यह शायरी लिखना उनका काम नहीं;
जिनके दिल आँखों में बसा करते हैं;
शायरी तो वो शख्श लिखता है;
जो शराब से नहीं कलम से नशा करता है।