
मेरे घर से मयखाना इतना करीब न था,
ऐ दोस्त कुछ लोग दूर हुए तो मयखाना करीब आ गया।
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है;
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।
कहते हैं पीने वाले मर जाते हैं जवानी में;
हमने तो बुजुर्गों को जवान होते देखा है मैखाने में।

तेरी निगाह से ऐसी शराब पी मैंने, फिर न होश का दावा किया कभी मैंने;
वो और होंगे जिन्हें मौत आ गई होगी, निगाह-ए-यार से पाई है जिन्दगी मैंने।
नशा तब दोगुना होता है,
जब जाम भी छलके और आँख भी छलके।

आता है जी में साक़ी-ए-मह-वश पे बार बार,
लब चूम लूँ तिरा लब-ए-पैमाना छोड़ कर।

ऐ ज़ौक़ देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुँह लगा,
छुटती नहीं है मुँह से ये काफ़र लगी हुई।

बैठे हैं दिल में ये अरमां जगाये;
कि वो आज नजरों से अपनी पिलायें;
मजा तो तब है पीने का यारो;
इधर हम पियें और नशा उनको आये।

पहले शराब ज़ीस्त थी अब ज़ीस्त है शराब,
कोई पिला रहा है पिए जा रहा हूँ मैं।

पीने से कर चुका था मैं तौबा मगर 'जलील';
बादल का रंग देख के नीयत बदल गई।