तेरी सादगी को निहारने का दिल करता है;
तमाम उम्र तेरे नाम करने को दिल करता है;
एक मुक़्क़मल शायरी है तू कुदरत की;
तुझे ग़ज़ल बना कर जुबां पर लाने को दिल करता है।
रख के मुँह सो गए हम आतिशीं रुख़्सारों पर;
दिल को था चैन तो नींद आ गई अँगारों पर।
आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन;
मरता हूँ मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है।
फ़क़त इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें;
मैं तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयाँ तक देखूँ।
अनुवाद:
फ़क़त = सिर्फ
हुस्न-ए-बयाँ = सुंदरता की परिभाषा

अब तो यूँ हो गए हैं मदहोश तेरी निगाह देख कर;
सदियों से पिये बैठे हैं जैसे जाम तेरी निगाह देख कर।

कुछ इस तरह से वो मुस्कुराते हैं;
कि परेशान लोग उन्हें देख खुश हो जाते हैं;
उनकी बातों का अजी क्या कहिये;
अल्फ़ाज़ फूल बनकर होंठों से निकल आते हैं।
देखी हैं कई महफिलें, ये फ़िज़ा कुछ और है;
देखे हैं जलवे बहुत, ये अदा कुछ और है;
पिए तो बहुत जाम हैं हमने, पर आपका नशा कुछ और है।
हमारा क़त्ल करने की उनकी साजिश तो देखो;
गुज़रे जब करीब से तो चेहरे से पर्दा हटा लिया।

तेरे हसीन तस्सवुर का आसरा लेकर;
दुखों के काँटे में सारे समेट लेता हूँ;
तुम्हारा नाम ही काफी है राहत-ए-जान को;
जिससे ग़मों की तेज़ हवाओं को मोड़ देता हूँ।
तेरे हुस्न को परदे की ज़रूरत ही क्या है ज़ालिम;
कौन रहता है होश में तुझे देखने के बाद।