ये किसका ढलक गया है आंचल;
तारों की निगाह झुक गई है;
ये किस की मचल गई हैं ज़ुल्फ़ें;
जाती हुई रात रुक गई है।
सोचा था इस कदर उनको भूल जाएँगे;
देखकर भी उनको अनदेखा कर जाएँगे;
पर जब जब सामने आया उनका चेहरा;
सोचा एस बार देख ले, अगली बार भूल जाएँगे।
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे;
तुम्हारे हुस्न की शरहें लिखी हैं इन रिसालों में।
बहुत खूबसूरत हैं आँखें तुम्हारी;
इन्हें बना दो किस्मत हमारी;
हमें नहीं चाहिये ज़माने की खुशियाँ;
अगर मिल जाये बस मोहब्बत तुम्हारी।
क़यामत है तेरा यूँ बन सँवर के आना;
हमारी छोड़ो, आईने पे क्या गुज़रती होगी!

दीवाने हैं तेरे नाम के इस बात से इंकार नहीं;
कैसे कहें कि हमें तुमसे प्यार नहीं;
कुछ तो कसूर है आपकी आँखों का;
हम अकेले तो गुनहगार नहीं।
क्या तारीफ़ करूँ आपकी बात की;
हर लफ्ज़ में जैसे खुशबू हो ग़ुलाब की;
रब ने दिया है इतना प्यारा सनम;
हर दिन तमन्ना रहती है मुलाक़ात की।
रात गुम सुम है मगर खामोश नही;
कैसे कह दूँ आज फिर होश नही;
ऐसे डूबा हूँ तेरी आँखों की गहराई में;
हाथ में जाम है मगर पीने का होश नही।
चाँद के दीदार में तुम छत पर क्या चली आई;
शहर में ईद की तारीख मुक्कमल हो गयी...
सिर्फ एक ही बात सीखी इन हुस्न वालों से हमने;
हसीन जिस कि जितनी अदा है वो उतना ही बेवफा है।