लोग कहते हैं जिन्हें नील कंवल, वो तो क़तील;
शब को इन झील सी आँखों में खिला करते है।

कितने नाज़ुक मिजाज़ हैं वो कुछ न पूछिये;
नींद नही आती है उन्हें धड़कन के शोर से।
उसको सजने की संवरने की ज़रूरत ही नहीं;
उस पे सजती है हया भी किसी जेवर की तरह...

मुस्कुरा के देखा तो कलेजे में चुभ गयी;
खँजर से भी तेज़ लगती हैं आँखें जनाब की...
सच कहते हैं लोग, इश्क़ पर जोर नहीं;
झुके जमाने के आगे, इश्क़ कमजोर नहीं;
यूँ तो बसते हैं हसीं लाखों इस ज़मीं पर;
मगर इस जहान में तुमसे बढ़कर और नहीं।
खींचती है मुझे कोई कशिश उसकी तरफ;
वरना मैं बहुत बार मिला हूँ आखरी बार उससे!
क्या ग़ज़ल सुनाऊँ तुझे देखने के बाद;
आवाज़ दे रही है मेरी ज़िंदगी मुझे;
जाऊं या ना जाऊं मैं तुझे देखने के बाद।
नज़रें झुकी तो पैमाने बने;
दिल टूटे तो मैख़ाने बने;
कुछ तो जरुर ख़ास है आप में;
हम यूँ ही नहीं आपके दीवाने बने।

फ़िज़ा में महकती शाम हो तुम;
प्यार में खहकता जाम हो तुम;
तुम्हें दिल में छुपाये फिरते हैं;
ऐ दोस्त मेरी ज़िंदगी का दूसरा नाम हो तुम।

अच्छी सूरत को सवारने की ज़रूरत क्या है;
सादगी भी तो क़यामत की अदा होती है।