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डरता हूँ कहीं मैं पागल न बन जाऊँ;
तीखी नज़र और सुनहरे रूप का कायल ना बन जाऊँ;
अब बस भी कर ज़ालिम कुछ तो रहम खा मुझ पर;
चली जा मेरी नज़रों से दूर कहीं मैं शायर ना बन जाऊं।

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तुम हक़ीकत नहीं हो हसरत हो;
जो मिले ख़्वाब में वही दौलत हो;
किस लिए देखती हो आईना;
तुम तो खुदा से भी ज्यादा खूबसूरत हो।

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कोई शायर तो कोई फकीर बन जाये;
आपको जो देखे वो खुद तस्वीर बन जाये;
ना फूलों की ज़रूरत ना कलियों की;
जहाँ आप पैर रख दो वहीं कश्मीर बन जाये।

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कहाँ से लाऊं वो शब्द जो तेरी तारीफ के क़ाबिल हो;
कहाँ से लाऊं वो चाँद जिसमें तेरी ख़ूबसूरती शामिल हो;
ए मेरे बेवफा सनम एक बार बता दे मुझकों;
कहाँ से लाऊं वो किस्मत जिसमें तु बस मुझे हांसिल हो।

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आईने में क्या चीज़ अभी देख रहे थे;
फिर कहते हो अल्लाह की कुदरत नहीं देखी।

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अंगराई लेके अपना मुझ पर जो खुमार डाला;
काफ़िर की इस अदा ने बस मुझको मार डाला।

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वो आपका पलके झुका के मुस्कुराना;
वो आपका नजरें झुका के शर्मना;
वैसे आपको पता है या नहीं हमें पता नहीं;
पर इस दिल को मिल गया है उसका नज़राना।

उतरा है मेरे दिल में कोई चाँद नगर से;
अब खौफ ना कोई अंधेरों के सफ़र में;
वो बात है तुझ में कोई तुझ सा नहीं है;
काश कोई देखे तुझे मेरी नज़र से!

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आपके दीदार को निकल आये हैं तारे;
आपकी खुशबु से छा गई हैं बहारें;
आपके साथ दिखते हैं कुछ ऐसे नज़ारे;
कि चुप-चुप के चाँद भी बस आप ही को निहारे!

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इक अदा आपकी दिल चुराने की, इक अदा आपकी दिल में बस जाने की;
चेहरा आपका चाँद सा और एक ज़िन्दगी हमारी उस चाँद को पाने की!

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