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अंदाज अपने देखते हैं आईने में वो;
और ये भी देखते हैं, कोई देखता न हो;
कल चौदहवीं की रात थी, रात भर रहा चर्चा तेरा;
कुछ ने कहा ये चाँद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा!

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कितने खड़े हैं पैरें अपना दिखा के सीना;
सीना चमक रहा है हीरे का ज्यूँ नगीना;
आधे बदन पे है पानी आधे पे है पसीना;
सर्वों का बह गोया कि इक करीना।

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नज़रे न होती तो नज़ारा न होता;
दुनिया में हसीनो का गुज़ारा न होता;
हमसे यह मत कहो की दिल लगाना छोड़ दे;
जा के खुदा से कहो कि हसीनो को बनाना छोड़ दे।

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खुदा ने जब तुम्हें बनाया होगा;
उसके दिल में भी सकून आया होगा;
पहले सोचा होगा तुम्हें अपना लूँ;
फिर उसे मेरा ख्याल आया होगा।

दिल, अजब शहर था ख्यालों का;
लूटा मारा है हुस्न वालों का।

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हसरत है सिर्फ तुम्हें पाने की;
और कोई ख्वाहिश नहीं इस दीवाने की;
शिकवा मुझे तुमसे नहीं खुदा से है;
क्या ज़रूरत थी, तुम्हें इतना खूबसूरत बनाने की?

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तुम्हारा नूर ही है जो पड़ रहा चेहरे पर;
वर्ना कौन देखता मुझे इस अंधेरे में!

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हम तो फना हो गए उनकी आँखे देखकर, ग़ालिब;
ना जाने वो आइना कैसे देखते होंगे!

तुम्हारी जुल्फ के साये में शाम कर लूंगा;
सफर इस उम्र का पल में तमाम कर लूंगा!

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पलकों को जब-जब हमने झुकाया है;
बस एक ही ख्याल आया है;
कि जिस खुदा ने तुम्हें बनाया है;
तुम्हें 'धरती' पर भेजकर वो कैसे जी पाया है!

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